वह किताबें दिल के बड़े करीब होती है, जो आपको सोचने पर मजबूर करे, और अक्सर लिखने को भी। “भली लड़कियां बुरी लड़कियां” अनु सिंह चौधरी द्वारा लिखित उपन्यास एक ऐसी ही किताब, ऐसी ही कहानी है, पूजा प्रकाश की। बिहार के एक छोटे से निकलकर, अपनी अम्मा के सपने को अपनी जिंदगी बनाकर, दिल्ली शहर आने की। एक ऐसा शहर, जो हर कदम पर आपके सामने मुश्किलें पैदा करे। रोजमर्रा की ज़िंदगी में जद्दोजहद पैदा करे। और ये कहानी है पूजा के साथ उसके रहनी वाली लड़कियों – मेघना सिम्ते, सैम तनेजा और देबजानी घोष की। ये कहानी है उस शहर की जो अपनों और सपनों में अंतर बताता है, प्रेम और भ्रम में डालता है, और कैसे अपने आपस के अंतर भुला, इनसे लड़ना सिखाता है।
कहानी की शुरुआत से ही ये एक सुनी सुनी, माफ़ करना, जी हुई कहानी लगती है। स्वयं एक दूसरी जगह से आकर, दिल्ली शहर में अपना “घर” ढूंढ पाना, एक साझा एहसास है। इस कारण ये कहानी शुरू से एक समां बांधे चलती है। PG ढूंढने से लेकर, PG में अपनी जगह बनाने तक का सफर दिल को छूता है। अरोरा आंटी और पुन्नू फुआ का किरदार अपने आप में एक कहानी कहता है। बिकास मिसरा का किरदार कई सारी जगहों पर, काफ़ी कम में भी बहुत कुछ कह जाता है।
लेखिका अनु सिंह चौधरी को पहली बार पढ़ना, पहली बार पढ़ने जैसा नहीं लगता। इनके लिखना में एक अपनापन है, एक अनकहा संबध। चलती कहानी के बीच में एक ऐसी पंक्ति लिखना, जो कहानी को छोड़कर, अपनी खोद की एक दास्तान कहे, आसान नहीं, पर लेखिका ने इसी कई दास्तान इस कहानी में कही है।
कहानी का अंत थोड़ा अटपटा, थोड़ा तेज़, थोड़ा भ्रमित लगता है। दिल का आक्रोश समझ आता है, दिल की जद्दोजहद समझ आती है, दिल का फ़ैसला समझ आता है, लेकिन वो दिल तक पहुंच नहीं पाता। मेरे ख्याल से कहानी का अंत थोड़ा और समय मांगता है, थोड़ा विस्तार, थोड़ा भावावेश और थोड़ा मनोभाव।
ये एक ऐसी कहानी है, जिसे पढ़ा जाना चाहिए, जिसके बारे में चर्चा होती रहनी चाहिए। हालांकि कहानी ऐसी है, जो लोगों को दो छोरों पर खड़ा कर दे, लेकिन यही कहानी का मकसद कहता है, एक चर्चा, एक द्वंद, एक संकीर्णता को उजागर करना, और ये कहानी उसमें सफल होती है।
प्रिय लेखिका, आपकी और कहानियां पढ़ने का इंतजार, ज़्यादा लंबा नहीं रहेगा। फिर मिलते हैं, जल्द ही।
यह भी पढ़े: भूली बिसरी यादें और अमृता प्रीतम जी की किताब
प्राची त्रेहन द्वारा लिखा गया उपन्यास “तुम से मुझ तक” की समीक्षा