एक किताब खुलेगी,
एक पन्ना पलटेगा,
एक कहानी सामने आयेगी
और एक किरदार उभरेगा।
तुम ठहरना,
संभालना,
और आहिस्ता आहिस्ता
चलते जाना
उस किताब के सफ़र में।
क्योंकि किताब के पन्नो को
पलटते पलटते
जब खुलेगा आखिरी पन्ना,
तब तुम पाओगे
उस कहानी के किरदार को
अपने संग
अपने साथ
अपने बगल में बैठे हुए।
और कब वो किरदार
तुम्हारे साथ से होते हुए
तुममें समा जाएगा,
और कब तुम्हारा
एक अटूट हिस्सा बन जायेगा,
तुम कह नहीं पाओगे।
या क्या पता शायद
तुम कहोगे वो दास्तान,
एक नई कहानी
और एक नए किरदार द्वारा
अपनी खुद की एक किताब के पन्नों में।
©जयनंद गुर्जर
Happy Book Lovers Day everyone! Finally wrote something after a long time today, because of books and our love for it ❤️📚
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2 thoughts on “कविता: एक किताब खुलेगी, एक पन्ना पलटेगा – जयनंद गुर्जर”